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भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा राजेंद्र प्रसाद (निबंध) – Class 9th Hindi Chapter 2 Objective & Subjective

Class 9th Hindi Chapter 2 : बिहार बोर्ड नौवीं कक्षा के लिए हिंदी का चैप्टर 2 का भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा राजेंद्र प्रसाद का इस निबंध का सारांश और वस्तुनिष्ठ प्रश्न को विस्तार से किस आर्टिकल में पढ़ेंगे जो नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए काफी मजेदार और महत्वपूर्ण चैप्टर है। इस सबसे पहले हम लोग भारत का पुरातन विद्यापीठ निबंध का परिचय जानते हैं।

भारत का पुरातन विद्यापीठ लेखक का परिचय?

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सबसे पहले आप सभी को यह बता दे कि भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा के लेखक डॉ राजेंद्र प्रसाद इस तरह से डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1844 को बिहार के सारण जिला जीरादेई गांव में हुआ था और यहां उनके पिता महादेव सहाय फारसी एवं संस्कृति के काफी अच्छे जानकार माने जाते थे और इन्होंने पहलवानी और घुड़सवारी के काफी शौकीन हुए थे। और इन दोनों की शिक्षा उन्होंने अपने पुत्र राजेंद्र प्रसाद को भी दिए थे इसके अलावा सबसे पहले नामांकन उनका छपरा के हाई स्कूल में हुआ और वहां से आठवीं दर्जे में रखे गए फिर वार्षिक परीक्षा में प्रथम आए थे और फिर स्कूल के प्राचार्य ने प्राप्तांक के प्रश्न होकर उन्हें दोहरी प्रोन्नति दी और 1902 ईस्वी में कोलकाता विश्वविद्यालय की मैट्रिकुलेशन परीक्षा में भी प्रथम आए थे और फिर इसके बाद आई बा और बा प्रेसीडेंसी कॉलेज से किया और फिर 1916 ईस्वी में जब पटना में एक अलग न्यायालय स्थापित हुआ तब वह फिर वकालत करने के लिए पटना चले आए राजेंद्र प्रसाद का राजनीतिक जीवन उत्कृष्ट रहा है इसके अलावा राजेंद्र प्रसाद कोलकाता में हिंदी विद्वानों की संगति में आए और उनके सक्रिय सहयोग से अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की भी स्थापना हुई थी।

भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा निबंध का सारांश?

भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा एक निबंध है और इस निबंध का लेखक राजेंद्र प्रसाद जी हैं इस निबंध का शुरुआत किस तरह से होता है कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1844 ई को सारण जिला बिहार के जीरादेही गांव में हुआ था राजेंद्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय फारसी एवं संस्कृति के अच्छे जानकार थे इस निबंध में राजेंद्र प्रसाद कोलकाता में हिंदी विद्वानों की संगति में आए और उनके सक्रिय सहयोग से अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई और फिर उन्हें लेखन की प्रक्रिया आजीवन चलती रही और फिर 28 फरवरी 1963 ई को इनका निधन हो गया और इस प्रस्तुत पाठ में भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा जो कि हमारे इतिहास की एक गौरवपूर्ण गाथा को समेटे हुए हैं और यहां पाठ तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था की ऐसी झांकी पेश करता है जिससे कि हमारी प्राचीन भारतीय शिक्षा एवं विद्या केदो का महानतम स्वरूप दिखलाई पड़ता है आगे भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा का इतिहास में अत्यंत आकर्षक नाम है जहां की चारों ओर न केवल भारतीय ज्ञान साधना के सुरभि पुष्प खिले हैं इसके अलावा किसी समय एशिया महाद्वीप के विस्तृत विभाग की विद्या संबंधित सूत्र भी उसके साथ जुड़े हुए थे मगध की प्राचीन राजधानी वैभव पांच पर्वतों के माध्यम में बसी हुई है गरीब राज्य या राजगिरी नामक स्थान में है नालंदा की प्राचीन इतिहास भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के समय तक जाता है और यहां रहते हैं कि बुद्ध के समय नालंदा गांव में प्रभारी को का आक्रमण था और जैन ग के अनुसार नालंदा में महावीर और आचार्य मैथिली पुत्र घोषाल की भेंट हुई थी।

नालंदा का यह नाम क्यों पड़ा था?

यदि आप भी यह सोचते हैं कि आखिर नालंदा का यह नाम क्यों पड़ा था तो यहां अपने पूर्व जन्म में उत्पन्न भगवान बुद्ध को तृप्ति नहीं होती थी और ना ही ना अल्लाह सच तो यह है कि ज्ञान के क्षेत्र में जैसा कि जो दान दिया जाता है वह सीमा रहित और अंत होता है । न उसके बाँटने वालों को तृप्ति होती है और न उसे लेने वालों को ।

नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म जनता के उदार दान से हुआ। कहा जाता है कि इसका आरंभ पाँच सौ व्यापारियों के दान से हुआ था, जिन्होंने अपने धन से भूमि खरीद कर बुद्ध को दान में दी थी। युवानचांग के समय में नालंदा विश्वविद्यालय का रूप धारण कर चुका था। यहाँ उस समय छह बड़े विहार थे। आठवीं सदी के यशोवर्मन के शिलालेख में नालंदा का बड़ा भव्य वर्णन किया गया है। यहाँ के विहारों की पंक्तियों के ऊँचे-ऊँचे शिखर आकाश में मेघों को छूते थे इसके अलावा उनके चारों ओर नील जल से भरे हुए सरोवर थे और जींस सुनहरे और लाल कमल तैरते थे। इसके अलावा देखा जाए तो बीच-बीच में सघन आम्रकुंजों की छाया थी। यहाँ के भवनों के शिल्प और स्थापत्य को देखकर आश्चर्य होता था। उनमें अनेक प्रकार के अलंकरण और सुंदर मूर्तियाँ थीं। यों तो भारतवर्ष में अनेक संघाराम हैं, और इसलिए नालंदा उन सब में आदित्य है।

Class 9th Hindi Chapter 2  : जैसा की विदेश के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का जो संबंध था ऐसे में उसका स्मारक एक धर्म पत्र और नालंदा की खुदाई में मिला है जहां इसे ज्ञात होता है कि सुवर्णदीप सुमात्रा के शासक शैलेंद्र सम्राट श्री बाल पुत्र देव ने मगध के सम्राट देव्पल देव के आसपास अपना दूध बेचकर यह प्रार्थना की पांच गांव का दान नालंदा विश्वविद्यालय को दिया जाए और यहां उन पांच नवगांव की आए प्रज्ञा परमिता आदि का पूजन इसके अलावा नालंदा में एक बड़े बिहार का निर्माण कराया बड़ी व्यावहारिक बुद्धि से तैयार किया गया है जहां विद्यार्थी उसे पढ़ सकते हैं इसके अलावा विद्वानों का अनुमान है कि कुर्की हर से प्राप्त हुई बौद्ध मूर्तियां नालंदा शैली से प्रभावित है हमारी अभिलाषा होनी चाहिए कि भूतकाल के इस प्रबंधन से शिक्षा ले और कला शिल्प साहित्य धाम दर्शन और ज्ञान का एक बड़ा केंद्र नालंदा में हमें पुनः स्थापित करें इस तरह से भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा निबंध की पूरी सारांश बताया गया है।

Class 9th Hindi Chapter 2 Objective

भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा निबंध के लेखक कौन है?

भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा निबंध के लेखक राजेंद्र प्रसाद जी हैं।

भारत का पुरातन विद्यापीठ क्या है?

भारत का पुरातन विद्यापीठ एक निबंध है जो राजेंद्र प्रसाद के द्वारा लिखा गया है।

राजेंद्र प्रसाद का जन्म कब हुआ था?

राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1844 को हुआ था।

राजेंद्र प्रसाद का जन्म कहां हुआ था?

राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के सारण जिला के जीरादेई गांव में हुआ था।

राजेंद्र प्रसाद के पिता किस चीज में अच्छे जानकार थे?

राजेंद्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय फारसी एवं संस्कृति के अच्छे जानकार थे।

Class 9th Hindi Chapter 2 Subjective

नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उसे पर तक फैल गई थी इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए?

भारत का विद्यापीठ नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उसे पर तक फैल गई थी इस वाक्य का आज से स्पष्ट यह है कि भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा के लेखक राजेंद्र प्रसाद जी हैं और यहां इस पाठ में हमारे इतिहास का एक गौरवपूर्ण गाथा को प्रस्तुत किया गया है इस पाठ में तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था की झांकी को पेश किया गया है जिससे विद्यार्थी पढ़ सकते हैं।

भारत का विद्यापीठ व्याख्या : भारत का विद्यापीठ का व्याख्या की बात करें तो अभी प्राचीन काल के भारत भर में नालंदा ज्ञान साधना का मुख्य केंद्र था और यहां भारत ही नहीं बल्कि अपितु पूरे एशिया महाद्वीप में इसका ख्याति विद्वान था और यहां ज्ञान प्राप्ति के लिए अनेकों देश से अनेक जातियों और धर्म के लोग नालंदा में अध्ययन के लिए आते थे और यहां 600 वर्षों तक नालंदा एशिया का चैतन्य केंद्र बना रहा और फिर गुप्तकालीन भारत में भी नालंदा शिक्षण का प्रमुख केंद्र बना रहा और यहां चाणक्य का संबंध भी नालंदा से था और फिर नालंदा का उच्च शिक्षा कोटि का और यहां विद्वान निवास करते थे इसके अलावा इतना ही नहीं उन्नति करने के कारण नालंदा का नाम दूर-दूर तक काफी प्रसिद्ध रहा नालंदा संस्कृत और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है वर्तमान समय में अभी नालंदा भारत के बिहार प्रानट में स्थित है।

मगध की प्राचीन राजधानी का नाम क्या था और वहां कहां अवस्थित था?

यदि आप यह सोच रहे हैं कि मगध की प्राचीन राजधानी का नाम क्या था और वह कहां अवस्थित था तो आप सभी को बता दे की मगध का प्राचीन राजधानी राजगिरी था और यह पांच पहाड़ियों से गिरा एक नगर था और फिर कालांतर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई और यहां मगध में तत्कालीन शक्तिशाली राज्य कौशल वत्स हुआ अवनीत को अपने साम्राज्य से लिया गया इस प्रकार से मगध का विस्तार अखंड भारत के रूप में हो गया है इसके अलावा मगध प्राचीन काल से ही राजनीतिक उत्थान पतन एवं सामाजिक धार्मिक राजनीति का केंद्र बना रहा है इस तरह से मगध की प्राचीन राजधानी का नाम और अवस्थित था।

मगध का नाम क्या है?

मगध का नाम की बात करें तो अभी वर्तमान में दक्षिण बिहार के नाम से जाना जाता है क्योंकि मगध साम्राज्य प्राचीन भारत का एक महाजनपद था जो पूर्वी भारत में बिहार राज्य के दक्षिण में फैला हुआ था और अभी इसकी राजधानी पाटलिपुत्र यानी आज पटना का था।

बुद्ध के समय नालंदा में क्या था?

यदि आप यह सोच रहे हैं कि आखिर बुद्ध के समय में नालंदा में क्या था तो आप सभी को बता दे कि बुद्ध के समय में नालंदा में बुद्ध के समय नालंदा के गांव में प्रवासी का अमरावन था।

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