Sampurn Kranti | संपूर्ण क्रांति – निबंध | जयप्रकाश नारायण भाषण का सारांश

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Sampurn Kranti | संपूर्ण क्रांति – निबंध | जयप्रकाश नारायण भाषण का सारांश

जयप्रकाश नारायण जो एक बहुत ही बड़े नेताओं में से एक थे जिनके बारे में आज के इससे लेख में विस्तार रूप से जानेंगे संपूर्ण क्रांति के लेखक जयप्रकाश नारायण जी का जन्म 11 अक्टूबर 1902 ई को सितारा दियारा गांव ( उत्तर प्रदेश के बलिया और बिहार के सारण जिले ) में हुआ था इनका बचपन का पुकारू नाम बाबुल था बड़े होने पर जेपी नाम से प्रसिद्ध अपनी जनपक्षधरता के लिए लोकनायक के रूप में प्रसिद्ध थे उनके माता एवं पिता का नाम फुल रानी एवं हरशु दयाल था। उनकी पत्नी का नाम प्रभावती ( प्रसिद्ध गांधीवादी ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री ) थी।

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जयप्रकाश नारायण जी का प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही फिर पटना कॉलेजिएट पटना में दाखिल हुए बिहार में हिंदी की वर्तमान स्थिति विषय पर लेख के लिए सर्वोच्च पुरस्कार प्राप्त किया इसके बाद पटना कॉलेज पटना में प्रवेश। असहयोग आंदोलन के दौरान शिक्षा अधूरी छोड़ी 1922 में शिक्षा प्राप्ति के बाद अमेरिका गए। वहां कैलिफोर्निया, वर्कले आदि कई विश्वविद्यालय में अध्ययन मार्क्सवाद और समाजवाद शिक्षा यही ग्रहण की। मां की अस्वस्थ के कारण पीएचo डीo न कर सके और देश लौट आए।

जयप्रकाश नारायण का राजनीतिक जीवन

1929 में कांग्रेस में शामिल 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल गए। जेल से बाहर निकलकर कांग्रेस के अंदर ही ‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ के गठन में अहम भूमिका निभाई 1939, 1943 में भी जेल गए। 1942 के आंदोलन से विशेष प्रसिद्धि मिली आजादी के बाद 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के गठन में योगदान। धीरे-धीरे सक्रिय राजनीतिक में स्वयं को अलग कर लिया 1954 में विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़े। 1974 में छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया और आपातकाल के दौरान जेल गए। जयप्रकाश नारायण की मार्गदर्शन में ही जनता पार्टी का गठन हुआ।

जयप्रकाश नारायण की कृतियां

जयप्रकाश नारायण की ‘रिकंस्ट्रक्शन ऑफ़ इंडिया पालिटी’ इन्होंने कुछ कविताएं लिखी डायरी एवं निबंध भी प्रकाशित किया और 1965 में समाज सेवा के लिए मैग्सेसे सम्मान। 1998 में जयप्रकाश नारायण को भारत रत्न मिला।

लोकतांत्रिक नेताओं में से एक कौन था?

जयप्रकाश नारायण 20वीं शताब्दी में भारत की एक प्रमुख समाजवादी विचारक क्रांति दर्शी नेता समर्पित समाजकर्मी तथा विद्रोही सावधीनता सेनानी थे। उनका अध्ययन विशाल और वैविध्यपूर्ण था राजनीतिक संगठन का कार्य और लोक सेवा का अनुभव व्यापक और गहन था भारतीय जनता में उनकी स्थाई विश्वनीयता और प्रतिष्ठा थी निष्ठा और अध्यवसाय से परिपूर्ण अपने सक्रिय रचनात्मक सार्वजनिक जीवन में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पहचान और प्रतिष्ठा कमाई वह अपने समय में विश्व के कुछ चुने हुए लोकतांत्रिक नेताओं में से एक थे।

पटना गांधी मैदान का ऐतिहासिक भाषण

5 जून 1974 के पटना के गांधी मैदान में दिए गए जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति वाले ऐतिहासिक भाषण का एक अंश प्रस्तुत है। संपूर्ण भाषण स्वतंत्रता पुस्तिका के रूप में जनपुक्ति पटना से प्रकाशित है इस संकट आंसर से उसकी एक छोटी सी झलक भर मिलती है किंतु लाखों लाख की संख्या में संपूर्ण प्रदेश और देश का विविध क्षेत्रों से आए लोगो विशेष कर युवा वर्ग के ऐतिहासिक जन सम्मर्द के बीच लोकनायक है ने अस्वस्थ दशा में भी शांतिपूर्वक अपनी बातें कहीं और संपूर्ण जनता मंत्रमुग्ध होकर सुनती रही। भाषण के बाद लोगों के हृदय में क्रांतिकारी विचार धधक उठे और आंदोलन ने विराट रूप धारण कर लिया पटना के गांधी मैदान में फिर ना वैसे भी इकट्ठी हुई है और ना वैसा कोई प्रेरक भाषण और पुरस्कार जन संवाद कायम हो सका।

बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति के मेरे युवक साथियों बिहार प्रदेश के असंख नागरिक भाइयों और बहनों अभी-अभी रेनू जी ने जो कविता पड़ी अनुरोध तो वास्तव में उनका था सुनाना तो वह चाहते थे मुझसे पूछा गया कि वह कविता सुना दे या नहीं मैं स्वीकार किया लेकिन उसने बहुत सारी स्मृतियां और अभी हाल की बहुत दुखद स्मृतियों को जागृत कर दिया इससे हृदय भर उठा है आपको शायद मालूम ना होगा कि जब मैं बेंगलुरु अस्पताल के लिए रवाना हुआ था तो जाते समय मद्रास में दो दिन अपने मित्र श्री ईश्वर अय्यर के छात्रों का था। वहां पर दिनकर जी गंगा बाबू मिलने आए थे बल्कि गंगा बाबू तो साथ ही रहते थे और दिनकर जी बड़े प्रसन्न लिखे उन्होंने अभी हाल ही की अपनी कुछ कविताएं सुनाएं और मुझसे कहा कि आपने जो आंदोलन किया है जितनी मेरी आशाएं आपसे लगी थी उन सब की पूर्ति आपके इस आंदोलन में नए आवाहन में देश के तरूणों का आपने जो किया है।

संपूर्ण क्रांति में हजारों लाखों जवानों ने कुर्बानियां दी?

अब मेरे मुंह से आप ओंकार नहीं सुनेंगे लेकिन जो कुछ विचार मैं आपसे कहूंगा वे विचार हुंकार से भरे होंगे क्रांतिकारी वे विचार होंगे जिन पर अमल करना आसान नहीं होगा अमल करने के लिए बलिदान करना होगा कष्ट सहना होगा गोली और लाठियां का सामना करना होगा जेल को भरना होगा जमीन की कुर्तियां होगी यह सब होगा यह क्रांति है मित्रों और संपूर्ण क्रांति है यह कोई विधानसभा के विघटन का ही आंदोलन नहीं वह एक तो एक मंजिल है जो रास्ते में है दूर जाना है दूर जाना है जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में अभी न जाने कितने मिलो इस देश की जनता को जाना है इस स्वराज को प्राप्त करने के लिए जिसके लिए देश के हजारों लाखों जवानों ने कुर्बानियां दी है जिसके लिए सरदार भगत सिंह साथी बंगाल के सारे क्रांतिकारी साथी राष्ट्रवाद के साथी महाराष्ट्र के साथी देश की क्रांतिकारी सभी गोली का निशान बने या तो फांसी पर लटकाए गए जिस स्वराज के लिए लाखों लाख देश की जनता बार-बार जिलों को भारती रही लेकिन आज 27 – 28 वर्ष के बाद का जो स्वराज है उसमें जनता कर रही है।

आज की स्थिति यह है और इस स्थिति में वहां दिनकर जी ने अपने कुछ हमें शब्द सुनाएं बड़े हृदय ग्राही थे। और उसी रात जब विदा हुए उसी रात को हमारे मित्र रामनाथ जी गोयंका (‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मालिक) के घर पर वह मेहमान थे रात को दिल का दौरा पड़ा 3 मिनट में उनको अस्पताल पहुंचाया गोयनका जी ने 3 मिनट में “विलिंगडन नर्सिंग होम” शायद उसे कहते हैं सारा इंतजाम था वहां पर पटना का अस्पताल तो पता नहीं 3 घंटे में भी तैयार ना हो पता सभी डॉक्टर सब तरह के औजार लेकर तैयार थे लेकिन दिनकर जी का हार्ट फिर से जिंदा नहीं हो पाया। उसी रात उनका निधन हो गया ऐसी चोट लगी उनकी यह कविता सुनकर उनका हुआ सुंदर सौम्य जोशीला चेहरा याद आ गया।

मुनादी

खलक खुद का, मुलुक बाश्शा का
हुकुम कहर कोतवाल का..
हर खासों आम को आगाह किया जाता है
की खखरदार रहें
और अपने अपने कीबाड़ों को अंदर से
कुंडी चढ़ा बंद कर ले
गिरा ले खिड़कियों के पर्दे
और बच्चों को बाहर सड़क पर ना भेजें
क्योंकि
एक बहतर बरस का बुड्ढा आदमी
अपनी कापती कमजोर आवाज में
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है।

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